चोटी की पकड़–69

रुस्तम बहुत खुश थे कि रानी साहिबा ने उन्हें जमादारी दी। जटाशंकर जान बचाने के लिए रुस्तम की जगह पहरा दे रहे थे। राजाराम रहस्य का भेद न पाकर खामोश हो गया। 


दूसरे पहरेदारों ने सुना और रुस्तम के तरफदार हो गए। जटाशंकर यह उड़ाए हुए थे कि वे शौकिया सिपाही का काम नहीं कर रहे। जल्द रुस्तम पर आफ़त आती है और ऐसी कि संभाली न संभलेगी। तीनों पहरों के सिपाही जो मौके पर नहीं थे, तरह-तरह की दीवार उठाते और ढहाते रहे।

सुबह का वक्त। रुस्तम कुर्सी पर बैठे थे। मुन्ना आई। राजाराम के सामने कहा, "रानीजी की सलामी दो।"

रुस्तम झेंपा। बोला, "रानीजी यहाँ कहाँ हैं?"।

राजाराम तनकर देखने लगा। तंबू के उसी सिपाही को पुकारकर कहा, "देख लो, जमादार का हाल।"

मालखाने से जमादार जटाशंकर भी तद्गतेन मनसा देखने लगे।

मुन्ना ने कहा, "सलामी नहीं देते तो जमादारी से बरखास्त किए जाओगे।"

रुस्तम घबराया। उठकर झेंपकर सलामी दी। देखकर मुन्ना ने कहा, "एक दिन में तुम्हारी चर्बी बढ़ गई। जमादारी के लिए तुमने कहा था, जमादारी तुमको दी गई। लेकिन तनख्वाह तुम्हारी वही रहेगी।"

राजाराम और तंबूवाला सिपाही हँसा। तंबूवाले ने कहा, "जमादार साहब ने इतनी मिहनत से चोर पकड़ा, जमादारी मिली, लेकिन अब तो कुछ और ही बात जान पड़ती है।"

मुन्ना ने कहा, "रानीजी की इच्छा। जमादार जटाशंकर को उन्होंने सिपाही बना दिया, लेकिन तनख्वाह वही रखी। आज हुक्म हुआ है, जमादार को 20) का इनाम मिले, क्योंकि काम बहुत अच्छा किया।"

राजाराम ने अपनी तरफ से समझा और खुश होकर दोमंजिले के मालखानेवाले पहरेदार जमादार जटाशंकर को, जो आँगन की ओर खड़े थे, आवाज लगाकर कहा, "जमादार, कैसा सच्चा फैसला आया है !" तंबू वाला, रुस्तम का तरफदार, कुछ न समझा। आवाज बैठाकर कहा, "बड़े आदमी का फैसला बड़े आदमी जाने।"

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1 Comments

Punam verma

17-May-2023 09:19 PM

Very nice

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